राकेश को आज फिर नौकरी ढूंढने की कुल बुला हट उठी और वह जिला पुस्तकालय से निकल पड़ा यूं तो राकेश 5 महीने से दर-दर की ठोकरें खा रहा था नौकरी के लिए पर सफलता तो जैसे उससे मुंह मोड़े हुए थे. राकेश स्नातकोत्तर हो चुका था परंतु दुनियादारी के स्कूल में वह अभी भी नर्सरी में ही था.https://www.blogger.com/blog/post/edit/9128079823692935031/6229286071779126794
राकेश को पता ही नहीं था कि उसे जीवन में करना क्या है करीब 7 सालों से सरकारी नौकरी की तैयारी करने पर जब उसे सफलता नहीं मिलती थी कि तो अब उसने निजी काम की तलाश शुरू की.
आज राकेश किसी नौकरी देने वाली संस्था के पास पहुंचा राकेश डरा सहमा अंदर गया संस्था के कर्मचारियों ने राकेश को नौकरी का आश्वासन तो दे दिया इसके साथ ही ₹300 की फीस भी देने के लिए कहा और इतना ही नहीं उसे अपने पहले वेतन का 40 परसेंट भी देने को कहा गया.
राकेश को तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था राकेश ने ₹300 दे दिए और संस्था की दूसरी शर्त को भी मान लिया राकेश बाहर आया तो राकेश के सारे विचार शांत हो गए थे जो जो कार्य एक योगी अपना सारा जीवन लगाकर करता है राकेश को यह विचार बंद करने के लिए ₹300 की कीमत चुकानी पड़ी आज रात राकेश अपनी नौकरी के बारे में कम ₹300 के बारे में ज्यादा सोच रहा था